Hindi: विश्व में बढ़ रहा है हिंदी का दबदबा…
Editorial News संपादकीय । विश्व की (Hindi) प्रभावशाली ताकतों का भारत के संदर्भ में हिंदी को लेकर नजरिया बदलने लगा है। वे अब हिंदी में भारतीय नेतृत्व को संदेश देने लगे हैं।

विश्व हिंदी दिवस के मौके पर यह मीमांसा स्वाभाविक है कि पिछले सोलह सालों में हिंदी ने वैश्विक स्तर कितना कुछ हासिल किया है? यह विरोधाभास ही कहा जाएगा कि साल 2006 में दस जनवरी को हर साल विश्व हिंदी श्व दिवस मनाने की घोषणा जिस मनमोहन सिंह सरकार ने की थी, उसी के कार्यकाल में देश की सर्वोच्च सेवाओं से हिंदी की परोक्ष रूप से विदाई की शुरुआत हुई। संघ लोकसेवा आयोग की परीक्षाओं में ऐसी व्यवस्था की शुरुआत हुई, जिसकी वजह से हिंदी हीं नहीं, भारतीय भाषाओं की विदाई शुरू हो गई। इसके लिए सी-सैट प्रणाली को जिम्मेदार ठहराया जाता है। नई सरकार में भी इस सिस्टम में बदलाव नहीं आया। अंग्रेजी के मशहूर समीक्षक और निबंधकार ईएम फास्टर ने अपनी पुस्तक आस्पेक्ट्स ऑफ नॉवेल में बड़ी बात कही है। उन्होंने साहित्य के बारे में कहा है। कि जिस साहित्य की जड़ें जितनी स्थानीय होंगी, वह उतना ही अंतरराष्ट्रीय हो सकता है। भाषाओं के बारे में भी ऐसा कहा जा सकता है, लेकिन इसके लिए जरूरी है कि उसे सही माहौल मिले।
Hindi: मिलना चाहिए था, वैसा नहीं मिला उत्साह
विश्व हिंदी दिवस की कल्पना देश ने कर ली, उसे लागू भी कर दिया। लेकिन भारतीय भाषाओं को लेकर जो माहौल मिलना चाहिए था, वैसा नहीं मिला। हालांकि पिछले कुछ साल में हालात बदले हैं। नई शिक्षा नीति में एक बार फिर प्राथमिक शिक्षा में स्थानीय और मातृभाषाओं का प्रयोग बढ़ाने और उनके जरिये शिक्षा देने की बात की गई है। लेकिन सर्वोच्च नौकरशाही की जो स्थिति है, कम से कम भाषाओं के संदर्भ में पाखंड या दिखावा ही नजर आता है। चूंकि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी हिंदी के प्रयोग में ज्यादा सहज नजर आते हैं, नीतियों में हिंदी समेत भारतीय भाषाओं को बढ़ावा देते नजर आते हैं, इसका असर नौकरशाही पर भी दिखता है। नौकरशाही की एक विशिष्टता है कि वह सर्वोच्च नेतृत्व की तरह व्यवहार करने लगती है। हालांकि ज्यादातर उसका यह व्यवहार दिखावा होता है, अंतःकरण में इस बदलाव का गहरा असर कम ही नजर आता है। चूंकि भाषा को लेकर औपनिवेशिक सोच गहरे तक बैठी है और इसी सोच वाली शिक्षा व्यवस्था से निकली नौकरशाही है, इसलिए हिंदी और भारतीय भाषाओं को लेकर जमीनी बदलाव कम नजर आ रहा है।