पाकिस्तान की उड़ी फ़जीहत, शर्म नाम की कोई चीज़ नहीं!
Editorial News संपादकीय । खुद को अफगान तालिबान के आका के रूप में स्थापित करने का पाकिस्तान का सपना चूर-चूर हो गया है, क्योंकि तालिबान ने पाक फौज का आदेश मानने से इनकार कर दिया है। अंतरराष्ट्रीय मान्यता पाने के लिए तालिबान आतंकियों के पनाहगार पाकिस्तान से खुद को दूर करने की कोशिश भी कर रहे हैं।

कई वर्षों से लगातार कश्मीर घाटी में हमलों के पीछे पाकिस्तानी खुफिया एजेंसी आईएसआई का हाथ रहा है, जिसमें पुलवामा हमला भी शामिल है, लेकिन इतिहास ऐसे दुष्ट राष्ट्र को माफ नहीं करता है, इसलिए तहरीक ए तालिबान पाकिस्तान (टीटीपी) इस कहावत को चरितार्थ कर रहा है कि ‘जैसा बोओगे, वैसा काटोगे। पाकिस्तान को पंजाब में अशांति और टीटीपी द्वारा आतंकवादी हमलों के कारण गंभीर आंतरिक संकट का सामना करना पड़ रहा है, जिससे सेना के जवान सहित निर्दोष लोग मारे जा रहे हैं। खुद को अफगान तालिबान के वास्तविक आका के रूप में स्थापित करने का पाकिस्तान का सपना चकनाचूर हो गया है, क्योंकि तालिबान ने पाकिस्तानी फौज से कोई आदेश लेने से इनकार कर दिया है और वे अंतरराष्ट्रीय मान्यता पाने के लिए आतंकी गुटों के पनाहगार कहलाने बाले राष्ट्र से खुद को दूर करने की कोशिश कर रहे हैं। पाकिस्तान दुनिया के सामने यह दिखाने की कोशिश कर रहा है कि वह आतंकवाद का वित्तपोषण नहीं कर रहा है, लेकिन हर देश जानता है कि वह आतंकवादियों को अब भी पनाह दे रहा है और एफएटीएफ की पर कोई फर्क नहीं पड़ा है।
के एस तोमर राजनीतिक विश्लेषक सूची से बाहर करने के बावजूद उस एक अकल्पनीय कदम उठाते हुए टोटीपी ने हाल ही में उत्तरी पाकिस्तान में अपनी समानांतर सरकार और विभिन्न मंत्रालयों के गठन की भी घोषणा की है। अफगानिस्तान में एक तमान नेता ने 1971 में भारतीय सेना के सामने पाकिस्तान के मर्पण की एक तस्वीर डालकर पाकिस्तान का मजाक उड़ाया और उसे दो कि अगर उसने टीटीपी के ठिकानों को नष्ट करने के बहाने अफगानिस्तान पर सैन्य हमला शुरू करने की हिम्मत की, तो उसे उसी धर्मनाक परिणामों का सामना करना पड़ेगा।
तालिबान सरकार के रक्षा मंत्री मुल्ला याकूब का अनुरोध) इसका संकेत है कि अंतरराष्ट्रीय क्षेत्र में पाकिस्तान की कम उपयोगिता देखने के बाद तालिबान किस तरह अपनी स्वतंत्र छवि बनाने की कोशिश कर रहा है। टीटीपी ने हाल ही में पिछले साल पाकिस्तान सरकार साथ की गई संघर्ष विराम की समाप्ति की घोषणा की और इस्लामाबाद के सामने महत्वपूर्ण सुरक्षा और विदेश नीति चुनौती पेश की, जिससे सरकार के साथ-साथ पाकिस्तान की ताकतवर फोन भी परेशान हो गई।
टीटीपी को तालियान शासन का पूरा संरक्षण प्राप्त है और माना जा रहा है कि अफगानिस्तान में सत्ता पर कब्जा करने के बाद तालिबान पड़ोसी पाकिस्तान में एक और सरकार बनाने पर आमादा है। तालिबान की मंशा का एक और प्रमाण इस तथ्य से स्पष्ट होता है कि दूरंड रेखा को मानने से इनकार कर और सीमा पर बाड़ लगाने के पाकिस्तानी प्रयासों को खारिज कर तालिवान वैश्विक मान्यता पाने के लिए अपनी संप्रभुता पर जोर दे रहे हैं। टीटीपी के वैचारिक और नस्लीय समानता के अलावा परिचालन स्तर पर बालिबान से संबंध है, जिसका उद्देश्य काबुल पर इस्लामाबाद के नियंत्रण को सीमित करने के लिए दबाव बनाना है।
लेकिन पाकिस्तान एक दुविधा में है, क्योंकि काबुल का दावा अस्वीकार्य है, इसलिए वह नई अस्थिर स्थिति से निपटने के लिए किसी भी रणनीति से बाहर चल रहा है। अगर इस्लामाबाद ने अफगानिस्तान में टीटीपी के ठिकानों पर हमला करने को हिम्मत की, तो सैन्य टकराव हो सकता है। संकेतों के अनुसार तालिवान इस्लामिक स्टेट के खुरासान प्रांत और प्रतिरोध समूहों से लड़ने पर अधिक केंद्रित है, लेकिन पाकिस्तान द्वारा उकसावे ने अनिश्चितता पैदा कर दी है और इसका नतीजा पाकिस्तान के लिए खतरनाक हो सकता है दुर्भाग्य से, हक्कानी नेताओं (जो सालिन्दान शासन का हिस्सा है) से समर्थन पाने की पाकिस्तान को उम्मीद धराशायी हो गई है, क्योंकि उन्होंने अपनी अनिच्छा जता दी है।
पहले तो पाकिस्तान ने दुनिया को दिखाया कि यह लिवन का सच्चा हितैषी है और उसने काबुल में नई सरकार के गठन में दखल तक दिया था। लेकिन विशेषज्ञों का कहना है कि बदलते समीकरणों के कारण पाकिस्तान और तालिबान टकराव की राह पर है, जिसकी पाकिस्तानी प्रधानमंत्री की बात से पुष्टि होती है। पाक प्रधानमंत्री शाहबाज शरीफ ने अफगानिस्तान की आतंकवादी समूहों की एक सुरक्षित पनाहगाह बताया और तालान को अपनी धरती से संचालित होने वाले टीटीपी ठिकानों को खत्म करने की चेतावनी दो, जो निकट भविष्य में दोनों पक्षों को टकराव के रास्ते पर ले जा सकता है।
तालिबान ने उम्र प्रतिक्रिया जताते हुए कहा कि किसी भी देश की दूसरे देश के क्षेत्र पर हमला करने का अधिकार नहीं है, क्योंकि दुनिया का कोई भी कानून इसके उल्लंघन की इजाजत नहीं देता है। अफगानिस्तान के रक्षा मंत्रालय ने पाकिस्तान की नाराजगी को निराधार एवं उकसाने वाला बताया का कहना है कि पाकिस्तान आर्थिक पतन के कगार पर है, जिसने उसे अमेरिका और चीन में अपनी संपत्ति बेचने पर मजबूर कर दिया है। लेकिन कोविड संकट के कारण चीन ने इसमें कोई दिलचस्पी नहीं दिखाई है। चीन अमेरिका की तरह अनुदान नहीं देता, बल्कि वह अपनी कर्ज नीति में गरीब देशों को फंसाता है, इसलिए पाकिस्तान नया कर्ज नहीं ले सकता है, जो उसे श्रीलंका के रास्ते पर धकेल सकता है। पाकिस्तान में खैबर पख्तुनख्या और बलुचिस्तान में आतंकी घटनाओं में से से वृद्धि हुई है और उस क्षेत्र में टीटीपी के सात से दस हजार आतंकी मौजूद हैं। पहले जिन आतंकियों ने हथियार डाल दिए थे, वे अब गुपचुप तरीके से फिर से आतंकी गतिविधियों को अंजाम दे रहे हैं, जिसने पाकिस्तानी सेना को हिलाकर रख दिया है। टीटीपी उस अफगान तालिबान से संबद्ध है, जिन्होंने अगस्त, 2021 में काबुल पर कब्जा कर लिया था। कट्टरपंथी इस्लामी संगठन ने संघर्ष विराम को खत्म करने की घोषणा के बाद से हमले तेज कर दिए हैं।
विशेषज्ञों का कहना है कि तालिबान की पाकिस्तान से दूर होने की रणनीति से क्षेत्र में नई गतिशीलता आ सकती है, जिसका मुख्य उद्देश्य अंतरराष्ट्रीय मान्यता पाने के लिए अपनी छवि सुधारना है। तालिबान उस पाकिस्तान को मदद से अपने मकसद में कामयाब नहीं हो सकते, जो स्वयं आर्थिक और राजनीतिक संकट का सामना कर रहा है।