मरते-मरते वह अस्पतालों की मॉक ड्रिल करवा गया…
संपादकीय । पिछले कुछ महीनों से वह सन्निपात में था। (मॉक ड्रिल) उसके बचने की उम्मीद नहीं बची थी। सबको पता था, वह चला जाएगा। कब तक चला जाएगा, यह भी पता था।

वह किसी राज्य का मुख्यमंत्री नहीं था, जो छह माह तक बिना चुनाव लड़े बना रहता। वह कोई नौकरशाह भी नहीं था, जिसका कार्यकाल साल दो साल बढ़ाया जा सके। वह तो दो हजार बाइस का साल था, जो उम्र पूरी कर जा रहा था। जैसा कि मनुष्यों के मामले में होता है, जाने वाला साल अपने अंतिम दिनों में सबको दुखी कर रहा था। उसकी पीड़ा देखी नहीं जा रही थी। चीन में बढ़ते हुए कोरोना को देखकर वह बार-बार कोमा में जा रहा था।
भारत में जहरीली शराब से हुई मौतें उसे विचलित कर रही थीं। रूस और युक्रेन के बीच युद्ध विराम देखना चाहता था, पर उसकी यह इच्छा भी पूरी नहीं हुई। वह यूपी के निकाय चुनावों के परिणाम जानने के लिए बेताब था, पर वे भी आगे खिसक गए।
कभी-कभी वह कोमा से बाहर आ जाता तो लोग उससे मिलने पहुंच जाते। एक सियासी युवा पहुंचे तो उसने अपनी ख्वाइश बताई । उसने कहा, मैं तुम्हारी शादी देखने के बाद मरना चाहता हूं। युवा ने बताया, वह सियासत के बड़े काम में लगा है। जहां तक शादी की बात है, जब तक अनुकूल पत्नी नहीं मिलती, शादी नहीं हो पाएगी। एक हिंदी युवा कवि उससे मिलने पहुंचा तो उसने कवि से भी अपनी ख्वाइश जाहिर कर दी।
उसने कहा, मैं तुम्हारे काव्य संग्रह के प्रकाशित होने के बाद ही मरना चाहूंगा। कवि ने निराश होकर कहा, मेरा प्रकाशक पांडुलिपि दबाए बैठा है। मेरी किताब के लिए अगर आप मरना स्थगित करते रहे, तो आपको भीष्म की तरह मरने प्रतीक्षा करनी होगी।
मरने वाले की बुद्धि खराब हो जाती है, इसका प्रमाण जाने वाला साल दे रहा था। उसकी यह हरकत भी उसे मरने से नहीं रोक पाई, पर मरते-मरते वह अस्पतालों की मॉक ड्रिल करवा गया।